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इस वेबसाइट में आपको हिंदी में मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी का कलेक्शन मिलेगा. इस पोस्ट के एन्ड में Related Post मिलेंगी उनको भी आप पढ़ सकते हैं.
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं
वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था
ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ
क्यूंकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में
Mirza Ghalib Shayari On Love
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी खबर नहीं आती
जी ढूंढता है फिर वही फुर्सत की रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-इ-जानन किये हुए
मिर्जा गालिब दर्द शायरी इन हिंदी
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ
जब कमान देखी अपनों के हाथ में
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात करनी नहीं आती
Heart Touching Mirza Ghalib Shayari
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।
शर्म तुम को मगर नहीं आती
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
Mirza Ghalib Sad Shayari
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
Mirza Ghalib Best Shayari
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए
Mirza Ghalib Shayari 2 Lines
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
Ghalib Romantic Shayari
हम जो सबका दिल रखते है
सुनो, हम भी एक दिल रखते है
हम भी दुश्मन तो नहीं है अपने
ग़ैर को तुझसे मोहब्बत ही सही
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब‘
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत है
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते है
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
Chand Shayari Ghalib
खूबसूरत गज़ल जैसा है तेरा चाँद सा चेहरा
निगाहे शेर पढ़ती हैं तो लब इरशाद करते है
बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर
पलकों से लिख रहा था तेरा नाम चाँद पर
बेसबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साजिश छुपा रहा है चाँद
ना जाने किस रैन बसेरो की तलाश है इस चाँद को
रात भर बिना कम्बल भटकता रहता है इन सर्द रातो मे
चाँद मत मांग मेरे चाँद जमीं पर रहकर
खुद को पहचान मेरी जान खुदी में रहकर
Sher By Ghalib
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं,
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर
मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं
चाहें ख़ाक में मिला भी दे किसी याद सा भुला भी दे,
महकेंगे हसरतों के नक़्श हो हो कर पाए माल भी
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते है जिस काफ़िर पे दम निकले
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
बेवजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है
ये ना थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते है
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले!
Mirza Ghalib Shayari In English
Bazicha-E-Atfal Hai Duniya Mere Aage
Hota Hai Shab-O-Roz Tamasha Mere Aage
Aah Ko Chahiye Ik Umr Asar Hote Tak
Kaun Jeetaa Hai Teri Zulf Ke Sar Hote Tak
Hazaaron Ḳhvahishen Aisi Ki Har Ḳhvahish Pe Dam Nikle
Bahut Nikle Mire Arman Lekin Phir Bhī Kam Nikle
Ye Na Thi Hamari Qismat Ki Visal-E-Yaar Hota
Agar Aur Jiite Rahte Yahī Intizar Hota
Qaid-E-Hayat O Band-E-Gham Asl Men Donon Ek Hain
Maut Se Pahle Aadmi Ġham Se Najat Paa.E Kyun
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अंतिम शब्द
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